बारात की प्रचलन
प्रश्न:- बारात का प्रचलन कैसे हुआ?
उत्तर:-👇
राजा लोगों से प्रारम्भ हुआ। वे लड़के के विवाह में सेना लेकर जाते थे। रास्ते में राजा की सुरक्षा के लिए सेना जाती थी। जिसका सब खर्च लड़की वाला राजा वहन करता था। सेठ-साहूकार दहेज में अधिक आभूषण तथा धन देते थे। वे गाँव के अन्य गरीब वर्ग के व्यक्तियों को दिहाड़ी पर ले जाते थे जो सुरक्षा के लिए होते थे। उनको पहले दिन लड़के वाला अपने घर पर मिठाई खिलाता था। लड़की वाले से प्रत्येक रक्षक को एक चाँदी का रूपया तथा एक पीतल का गिलास दिलाया जाता था। जो गरीब वर्ग अपनी गाड़ी तथा बैल ले जाते थे, उनको कुछ अधिक राशि का प्रलोभन दिया जाता था। पहले जंगल अधिक होते थे। यातायात के साधन नहीं थे। इस प्रकार यह एक परम्परा बन गई। उस समय अकाल गिरते थे। लोग निर्धन होते थे। कोई धनी अकेला मिल जाता था तो उसको लूटना आम बात थी। इस कारण से बारात रूपी सेना का प्रचलन हुआ। फिर यह एक लोग-दिखावा परम्परा बन गई जिसकी अब बिल्कुल आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न:- भात तथा न्योंदा-न्यौंदार कैसे चला?
उत्तर:- उसका मूल भी बारात का आना, दहेज का देना। बारात ले जाने के लिए लड़के वाले द्वारा मिठाई खिलाना। लड़की वाले के लिए भी उस बारात के लिए मिठाई तथा रूपया-गिलास देना आदि के कारण भात तथा न्यौता (न्योंदा) प्रथा प्रारम्भ हुई। न्योता समूह में गाँव तथा आसपास गवांड गाँव के प्रेमी-प्यारे व्यक्ति होते हैं। जिसके लड़के या लड़की का विवाह हो तो अकेला परिवार खर्च वहन नहीं कर सकता था। उसके लिए लगभग सौ या अधिक सदस्य उस समूह में होते हैं। जिसके बच्चे का विवाह होता था तो सब सदस्य अपनी वित्तीय स्थिति अनुसार न्योता (धन राशि) विवाह वाले के पिता को देते हैं। कोई सौ रूपये, कोई दो सौ रूपये, कोई कम, कोई अधिक जो एक प्रकार का निःशुल्क उधार होता है। उस पर ब्याज नहीं देना पड़ता। सबका न्योते का धन लिखा जाता है। प्रत्येक सदस्य की बही (डायरी) में प्रत्येक विवाह पर दिया न्योता लिखा होता है। इस प्रकार विवाह वाले परिवार को धन की समस्या नहीं आती है।
भात:- 👇
भात भी इसी कड़ी में भरा जाता है। बहन के बच्चों के विवाह में कुछ कपड़े तथा नकद धन देना (भाई द्वारा की गई सहायता) भात कहा जाता है जो धन बहन को लौटाना नहीं होता। जिन बहनों के भाई नहीं हैं, वे उस दिन अति दुःखी होती हैं, एकान्त में बैठकर रोती हैं।
पीलिया:- 👇
लड़को संतान उत्पन्न होने पर मायके वालों की ओर से जच्चा के लिए घर का देशी शुद्ध घी, कुछ गौन्द (घी$आटा भूनकर$गोला$अजवायन$काली मिर्च का मिश्रण गौन्द कहलाता है), नवजात बच्चे के छोटे-छोटे कपड़े (झूगले) भी मायके वाले तथा लड़की की ननंदों द्वारा लाए जाते हैं। यह परंपरा है जो कपड़े एक वर्ष के पश्चात् व्यर्थ हो जाते हैं।
इस तरह की परंपरा को त्यागना है क्योंकि जीवन के सफर में व्यर्थ का भार है। आप अपनी बेटी की सहायता कर सकते हैं। जैसे गाय-भैंस लेनी है। बेटी की वित्तीय स्थिति कमजोर है तो उसको नकद रूपये दे सकते हैं। बेटी का आपकी संपत्ति में से हक दे सकते हैं, अगर बेटी लेना चाहे तो। बेटी को चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर धन ले ले, परंतु फिर लौटा दे। परमात्मा पर विश्वास रखे। आपका सम्मान बना रहेगा।
समाधान:- 👇
इन सबका समाधान है कि विवाह को सूक्ष्मवेद के अनुसार किया जाए। आप जी ने चार वेद सुने हैं:- यजुर्वेद,ऋग्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। परंतु पाँचवा वेद सूक्ष्म वेद है जो स्वयं पूर्ण ब्रह्म जी ने पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से अमृतवाणी द्वारा प्रदान किया है।
मेरे (रामपाल दास के) अनुयाई उसी पाँचवें वेद के अनुसार विवाह रस्म करते हैं जिसमें कोई उपरोक्त परम्परा की आवश्यकता नहीं पड़ती। विवाह पर तथा अन्य अवसरों लड़की-लड़के वाले पक्ष का कोई खर्च नहीं कराना होता। केवल कन्यादान यानि बेटी दान करना है। लड़की अपने पहनने के लिए केवल चार ड्रैस ले जा सकती है। जूता तो पहन रखा है, बस। जिस घर में जाएगी, वह परिवार उस बेटी को अपने घर के सदस्य की तरह रखेगा। अपने घर की वित्तीय स्थिति के अनुसार अन्य सदस्य के समान सर्व आवश्यक वस्तुऐं उपलब्ध कराएगा। बेटी अपने माता-पिता, भाई-भाभी पर कोई भार नहीं बनेगी। जब कभी अपने मायके आएगी तो कोई सूट तथा नकद नहीं लेगी। जिस कारण से भाभी-भाई को भी प्यारी लगेगी। भाभी को ननंद इसीलिए खटकती है कि आ गई चार-पाँच हजार खर्च करवा कर जाएगी। परंतु हमारी बेटी सम्मान के साथ आएगी और सम्मान के साथ लौट जाएगी। अपने मायके वालों से कोई वस्तु नहीं लेगी। जिससे दोनों पक्षों का परस्पर अधिक प्रेम सदा बना रहेगा। भक्ति भी अच्छी होगी। इस प्रकार जीने की यथार्थ राह पर चलकर हम शीघ्र मंजिल पर (मोक्ष तक) पहुँचेंगे।
प्रश्न:- जिनको संतान प्राप्त नहीं होती है, उस बेऔलादे (संतानहीन) का तो सुबह या शुभ कर्म को जाते समय मुख देखना भी बुरा मानते हैं? ऐसा क्यों?
उत्तर:- यह संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान के टोटे के कारण गलत धारणा है। पाठकजन पुस्तक जीने की राह के पृष्ठ 6 पर पढ़ें कि एक व्यक्ति के चार पुत्र थे, उसको अधरंग हो गया तो किसी ने सेवा नहीं की। क्या उस आदमी के दर्शन इसलिए अच्छे हैं कि उसके संतान हैं। उसकी दुर्गति को कौन देखना अच्छा समझेगा
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
Nice❤
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