पूर्ण परमात्मा कौन है..?

पूर्ण भगवान (परमात्मा) कौन है?

  


हिंदू धर्म में अनेकों देवी देवता (भगवान) है। परंतु वह सभी देवी देवता (भगवान) तथा 24 अवतार जो हुए हैं वह कर्मो के अनुसार ही जीव को कर्म फल प्रदान करते है। वह पाप कर्म नही काट सकते है। और यह देवी देवता अपने कर्म फल भोगने से नही बच पाए है।
                
                             
अविनाशी परमात्मा

                          
जैसे की तीन ताप के अंतर्गत भगवान विष्णु (God Vishnu) जी को भी कर्म फल राम और कृष्ण रूप में भोगना पड़ा।


श्री कृष्ण जी ने राम जी वाले जन्म में बाली को धोखे से मारने   का कर्म भोगे।
बाली वाली जीव आत्मा जो एक भील के रूप में जन्म था। उसके द्वारा छोड़े गए विशाख्त (जहरीली) तीर लगने के कारण धोखे से  मृत्यु हुई।
 

 इसी प्रकार

श्री रामचन्द्र जी का भी वनवास उनके प्रारब्ध कर्म फल  स्वरूप था।

 तौतीस करोड़ देवी देवता रावण के कैद में रहना भी प्रारब्ध का कर्म फल था।


इससे सिद्ध होता है की यह देवी देवता तथा अवतार तीन ताप का नाश कर अपने तथा अपने भक्तो के कर्मो में फेर बदल नही कर सकते हैं। सिर्फ पुण्य फल ही प्रदान कर सकते है। यह देवी देवता पाप कर्म नही काट सकते है। पाप कर्म तो केवल पूर्ण परमात्मा ही टाल सकता है।
जबकि यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में प्रमाणित है की पूर्ण परमात्मा अपने भक्तो के घोर से घोर पाप कर्म को क्षमा कर देता हैं। और

वह पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी हैं।


ऋगवेद मंडल 10 सुप्त 161 मंत्र 2 में प्रमाण है की पूर्ण परमात्मा अपने साधक (भक्त) के रोग समाप्त कर देता हैं। यदि आयु समाप्त है तो भी स्वस्थ कर के 100 वर्ष तक की आयु बड़ा देता हैं।

यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है की।
कविरंघारी: असि, बांभरी: असी स्वज्योति श्रीधामा असि
अर्थात कबीर साहेब पापो के शत्रु यानी सभी पापो से मुक्त करा कर सर्व बंधनों से छुड़वाते हैं वह स्व्प्रकासित सहशरीर है और सतलोक में रहता हैं।

कबीर परमेश्वर वास्तावित पूर्ण परमात्मा है जो चारो युगों में अगल - अलग नाम से आते है। और अपनी महिमा स्वयं बताते है उनका जन्म मां के गर्व से नही होता हैं।

ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में स्पष्ट है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमात्मा) शिशु रूप धारण कर के संसार को तत्वज्ञान देने के लिए प्रकट होता हैं। जो अपना तत्वज्ञान दोहा, कविताओं द्वारा बोलकर सुनाता है जिससे लोग उनको संत या कवि कह कर कहने लग जाते है

कलयुग में भी कबीर परमेश्वर जेष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमाशी विक्रम संवत 1455 सन 1398 ब्रह्म मुहूर्त में लहरताला तलाब में कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। वह 120 वर्ष तक पृथ्वी पर रहे और कविताओं द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किए थे।

कबीर साहेब (Kabir) ने स्वयं कहा है की:- 

   
    मात पिता मेरे कुछ नाही, ना मेरे घर दासी।
     तारण तरण अभय पद दाता, हूं कबीर अविनाशी।।

लेकिन हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं का जन्म माता के गर्व से हुआ।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को खास तौर पर अविनाशी माना जाता है।

लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंद पृष्ट 123 पर अस्पष्ट प्रमाण है की तीनो गुण रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु, तमगुण शिवजी। यह सभी बह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन हुए यह तीनों प्रभु नाशवान है।

इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर (God) कबीर साहेब जी हैं।


हिंदू तथा धर्म में पूजे जाने वाले सभी देवी देवता में से कोई भी उनके शास्त्रों में वर्णित पूर्ण परमात्मा नही हैं।  इन देवताओं को शक्ति (power) सीमित है लेकिन कबीर परमेश्वर जी का शक्ति (power) का कोई सीमा नही हैं।


 कबीर चार भुजा के भजन में, भुली पड़े सब संत।                कबीरा सिमरे तासू को, जाके भुजा अनंत।।
  
जैसे की हम सभी कहते भी है परमेश्वर ही होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी में बदल देता हैं 
ऐसे ही अनेकों अनहोनिया कबीर परमेश्वर ने किए थे आज से लगभग 600 वर्ष पहले।

                
पूर्ण परमात्मा कौन है?

जैसे की:

एक बार कबीर कबीर परमेश्वर को शेखतकी खूनी हाथी के सामने हाथ पैर बांध कर डलवा दिया। लेकिन जैसे ही हाथी कबीर परमेश्वर के पास आया कबीर परमेश्वर ने उसे बब्बर शेर का रूप दिखाया। जिसे देख कर हाथी डर के मारे भाग गया।

 

   "शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमासी। खूनी हाथी आगे डाले, बाध जुड़ अविनाशी।। हाथी डर के भाग जासी, दुनिया गुड़ गाती है।"



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